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विचार और विचार प्रवाह

मेरा कोना
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समय बिताने के लिए आजकल चिठ्ठेबाजी शुरू कर दी है. बहुत दिनों से मेरा लिखने का मन करता था. मेरे दिमाग में बहुत सारे विचार आते थे. परन्तु लेखन तो लेखन है, इतना आसां नहीं है. विचार तो हमेशा आते रहते है. विचारो का आना तो spontaneous है. spontaneous शब्द को पहली बार भौतिक विज्ञान में पड़ा था. शाब्दिक अर्थ तो मैंने तभी ढूंढ़ लिया, पर इस शब्द का मर्म समझाने मे बहुत टाइम लग गया. अंत मे मुझे लगता है spontaneous का शाब्दिक अर्थ तो है पर इस जैसा शब्द, हिंदी मे नहीं है. जैसे Religion, इसका भी अर्थ सटीक नहीं है. बस धर्म को Religion का पर्याय बना दिया गया है. हमे हिंदी मे Religion के लिए एक नया शब्द लाना चाहिए. और जो धर्म शब्द का असली अर्थ Religion से पहले था वही बना रहना चाहिए. धरति सः धर्मः, अर्थात धर्म वो है जो आप धारण करते है. जो आप करते है और करने की ठान लेते हैं. ऐसे ही spontaneous का शाब्दिक अर्थ स्वाभाविक या स्वतः उतना सटीक नहीं लगता. “spontaneous process” के लिए “स्वाभाविक प्रक्रिया” मे वजन नहीं आ पाता. मुझे एक नए शब्द की उत्पत्ति की जरूरत लगती है. इस तरह से हिंदी का शब्दकोष भी व्यापक होगा. ठीक उसी तरह जैसे इंग्लिश का. इंग्लिश वाले अलग अलग भाषाओँ से शब्द लेते हैं और नए शब्दों की रचना भी करते रहते है. कुछ दिन पहले काफी सारे हिंदी शब्दों को इंग्लिश शब्दकोष मे स्थान मिल गया है. जैसे अँगरेज़, फिरंगी, मेमसाब, दूध, दही. इससे इंग्लिश ज्यादा व्यापक हुई है. हिंदी वहीँ खडी है.

खैर मैं विषय से काफी अलग चला गया. वापस विषय पर आता हूँ. विचार तो एक spontaneous process है. विचार जितनी तेजी से आते है उतनी तेजी से ही चले भी जाते है. चले जाने का तात्पर्य विचार के लोप हो जाने से नहीं है. नया विचार पुराने विचार की जगह ले लेता है. दिमाग को नयी खुराक मिल जाती है. इन तेजी से आते जाते विचारों को कलमबद्ध करना उतना सरल नहीं है. आखिर मन की गति तो प्रकाश से भी ज्यादा तेज है. और इसे हिंदी मैं कम्पूटर पर टाइप करना बहुत ही टेढ़ी खीर है. कलमबद्ध को टाइप करने के लिए मुझे बहुत टाइम लगा गया. विचारों को कागज पर उतारना शायद आसान हो सकता है. पर हिंदी मैं ब्लॉग्गिंग बहुत कठिन है. टाइपिंग को ठीक करते करते, विचार क्रम टूट जाता है. चिठ्ठा लिखने के लिए बहुत ही एकाग्र होने की आवश्यकता है. आपको अपने विचार को जाने नहीं देना है और नए विचार के मोह मैं भी नहीं पड़ना है. बहुत मुश्किल हो रही है.

मेरे शुरूआती चिठ्ठों मे और अभी के चिठ्ठों मे फर्क नजर आने लगा है. भाषा परिमार्जित हो रही है. एक अन्य बात, वर्तनी(Spelling) की अशुद्धि एक सामान्य समस्या है. इसमे लेखक का शाब्दिक ज्ञान उतना जिम्मेवार नहीं है जितना ये टाइपिंग सॉफ्टवेर. अब कुछ दिन पहले तक मैं quillpad.com use कर रहा था. उसमे मुझे पाठिका टाइप नहीं हो पाया. पाठइक लिख कर काम चलाया, फिर गूग्गल का transliterate use करना शुरू किया है. quillpad.com से कुछ बेहतर है. पर मुश्किल अभी भी है. दिल्ली अभी दूर है भाई.

विचारों को नियंत्रित करते हुए लिखने मे मजा तो आ रहा है. साथ ही विचारों पर पकड़ भी बनने लगी है. लिखने मे बहुत टाइम लगता है. लिखने की गति पहले से बढ चुकी है.

अब विदा लेता हूँ.

– मनोज

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